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हे मतदाता महान, तुम्हें प्रणाम !

SWATANTRA SOCH
SWATANTRA SOCH
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अक्सर देखा जाता है की जनता नेता की स्तुति करती है, टांग खींचती है| इस कविता में, एक नेता द्वारा जनता (मतदाता) का स्तुतिगान किया है जो वोटरों पर व्यंग है———–

हे दयालु, हे कृपालु ,
मतदाता तुम्हें प्रणाम,
शत-शत प्रणाम|

हम नेतन सेवक तुम्हारे,
स्वामी इक तुम ही हमारे,
लूट-खसोट,भ्रष्टाचार,
अपराध हैं कर्म हमारे,
इन घडियाली आसुओं पर,
पड़ते रहें हैं वोट तुम्हारे,
तुम कृपालु, तुम दयालु,
तुमको शत शत प्रणाम,
हे मतदाता महान|

जब जाएं जेल हमारे आका,
तुम हवन यज्ञ करवाते,
जेल से ही चुनाव लड़ते,
तुम भारी मतों से जिताते,
स्वामी हमारे कुकर्मों को,
जल्द भूल जाते,
हमें माफ़ कर जाते,
हे मतदाता महान,
तुम्हें शत शत प्रणाम|

हमरी रैली में आते हो,
ताली खूब बजाते हो,
प्रभु पौव्वा,बोतल
और नोटों के भोग
से मान जाते हो,
अपने घर में हमरे,
पोस्टर लगवाते हो,
पांच साल का कार्यकाल,
किया न किया सब भूल जाते हो,
भूलते नहीं सिर्फ हमारा
चुनावी निशान,
हे मतदाता महान
तुम्हें शत शत प्रणाम |

हम जब मुद्दों से भटक जाते,
जाति,धर्म,क्षेत्र के नाम से चुनाव जिताते,
हमरी निकम्मी औलोदों को,
सराखों में बिठाते हो,
नेतागिरी पेशा हमारा,
और ये बिश्वास तुम्हारा,
अपना आदर्श बनाते हो,
हे मतदाता महान,
तुम्हें शत शत प्रणाम |

तुमरे वोट की ताकत से,
हम केस वापस करवाते,
काला धन खूब कमा,
स्विस बैंक हैं जाते,
हम बत्ती का रौब दिखाते,
तुम जोड़ हाथ गिड़गिडाते,
विकास को धन,सस्ता राशन,
हमें रोज के ज्ञापन देते,
हम पर तुम मेहरबान,
हे मतदाता महान,
तुम्हें शत शत प्रणाम |

अंत में एक अपील————-
” पांच साल और मौका दो प्रभु, बीते जो पांच साल|
तुम्हें भूल गए थे हम, अपनों को किया मालामाल||
आगामी पांच सालों में, विकास का संकल्प लूँगा|
तुम्हरी सेवा के साथ, होलीकप्टर खरीदूंगा ||

आगाह ___________
हे जनता ! तू कब जागेगी ,
जात, पंथ, दारू से कब भागेगी,
मैं हूँ राजनीति का विभीषण,
कहता हूँ तुझे इस क्षन,
बदल ले तू अपना मन,
रावण का वध कर दे,
भारत को भारत कर दे !
तब कहूँगा संतुष्ट होकर,
“हे मतदाता महान,
तुम्हें शत शत प्रणाम”|

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